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 जून माह की 16-17 तारीख को आया उत्तराखण्ट में प्रकृति का प्रकोप
सारी विडम्वनाओं के साथ प्रकृति का  विनाशकारी स्वरुप को भयावह स्वरूप  में मानव के सन्मुख  ले कर आया  उसी तारीख में हमारी देहरादून मोहयाल सभा की मासिक मीटिंग भी थी लेकिन वर्षा का विकराल स्वरूप  हमारी मीटिंग की उपस्थिति में भी बाधा  बना पूरी उपस्थिति न होने के कारण माह जून की मीटिंग को स्थगित करना पड़ा ।

अगले दिन समाचार पत्रों  टेंली विजन  आदि से उत्तराखण्ड के केदारनाथ  बद्रीनाथ  श्री हेमकुन्ड  साहिब आदि स्थानों में तीर्थ  यात्रियों , सैलानियो के फंसने और बड़ी संख्या  में हताहत होने के समाचार मिलने लगे  । ।
इन सब समाचारों से  व्यथित हो अपने सीमित  माध्यमों से, सदर्स्या के अन्य समाजिक संस्थाओं के साथ सहयोग से विभिन्न स्थानों पर हमारे द्वारा  जन हितार्थ कार्य किए गए । श्री सनातन धर्मसभा देहरादून के कार्यकारणी के सदस्य श्री यशवन्त दतता  जी इवारा मलेथा श्रीनगर पौड़ी के पास भण्डारा स्थापित किया गया श्री लालप्रवेश मेहता सचिव मोहयाल सभा ने श्री योग कृष्णा फाउन्डेशन के सहयोग से एयरपोर्ट डोईवाला (जौलौग्रांट)  देहरादून में गुरु  सिंह सभा के साथ लंग्रार की व्यवथा  की  इसके अतिरिक्त हमारे पास कई मोहयाल भाइयों के फोन आए, जिन्होंने स्वयम  आने या अपनी  संस्था के माध्यम से सामाजिक कायों के लिए स्वयं के प्रस्तुत किया लेकिन यातायात की अव्यवस्था और राहत के लिए मची  अफरातफरी  में जन साधारण तक सेवा के न पहुॅत्त पाने के कारण हमने सभी को स्थिति से अवगत कराया ।
लेकिन बड़े खैंद के साथ लिखना पढ़ रहा है कि कुछ हमारे मोहयाल भाई जो स्वयं को जनजनार्दन  का हितैषी प्रस्तुत करते हैं बड़े ही बचकाना सुझाव इन्टरनेट  के माध्यम से मोहयाल आश्रम हरिद्वार  के बारे में दे रहे थे । हम तो स्वयं मौके पर उपस्थित थे तो वह अपने घर बैठे कैसे  जीएमएस को सुझाव दे रहे थे कि मोहयाल आश्रम का लंगर आपदा मीड़ितों के लिए खोल देना चाहिए  कौन मना करता है लेकिन क्या आपदा पीड़ित हरिद्वार  आश्रम तक खाना खाने आ सकेंगे  या  फिर केदारनाथ या अन्य स्थानों पर फसें व्यक्तियों  को हरिद्वार  में  लंगर व्यवस्था का क्या लाभ मिलता । 
प्रतिदिन समाचार पत्रों में लेख आ रहे हैं कि लोगों ने जो सामग्री .आपदा पीड़ितों के लिए भेजी वह वास्तविकता से कोसों दूर थी ।  ब्रेड ,बिस्कुट  या मिनरल वाटर वास्तव  में मौके तक पहुच पाया । मैंने स्वयं देखा कि एयरपोर्ट के पास के जंगलों में बन्दरों को राहत सामग्री लाने वाले बिस्कुट  खिला रहे थे  , पुराने कपड़े जो राहत में भेजे गए, सरकार  द्वारा  न लेने पर  जंगलों में फैंके जा रहे हैं
कहने का तात्यर्य यह है कि सेवा वह होनी चाहिए जो जनसाधारण  तक पहुंचे ।


Lal Parvesh Mehta











लाल परवेश मेहता (सचिव देहरादून सभा )
सौजन्य से -मोहयाल मित्र

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