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फिर मेरा जिक्र आम हुआ

कहावत है इतिहास हमेशा विजेताओं को याद रखता है, लेकिन मिल्खा सिंह ने इसे झुठलाया है। रोम ओलंपिक में स्वर्ण के प्रबल दावेदार होने के बावजूद चौथे स्थान पर रहे मिल्खा को इतिहास ने नहीं भुलाया। उन्हें इस बात की खुशी है, लेकिन एक अरब से ज्यादा की आबादी वाले देश में केवल एक मिल्खा सिंह होने का उन्हें दुख भी है। इसकी मुख्य वजह वह देश में खेलों के प्रशिक्षण के प्रति उदासीनता को मानते हैं। उनका मानना है कि देश में प्रतिभा की कमी नहीं है, उसे बस निखारने की जरूरत है। 1अपने जीवन पर बनी फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ के बाद हरेक की जुबान पर अपना नाम देखकर मिल्खा ने कहा, ‘मैं तारीफ करता हूं फिल्म से जुड़े सभी लोगों की, जिनकी वजह से एक बार फिर मेरा जिक्र आम हुआ है। फिल्म की हर तरफ तारीफ हो रही है। विदेश से भी मुङो कई फोन आ रहे हैं। मेरी उम्र के लोगों के लिए मैं कोई अनजान शख्स नहीं था, लेकिन इस फिल्म ने मुङो आज की युवा पीढ़ी से भी जोड़ दिया।’ गुरुवार को ‘रेस्पेक्ट एएसआइसीएस स्कूल खेल चैंपियनशिप’ जिसमें देश भर के 96 शहर के 2500 स्कूलों के 25000 बच्चे भाग लेंगे की शुरुआत के मौके पर उन्होंने कहा, ‘अब समय आ गया है जबकि देश को एक नहीं बल्कि हजारों मिल्खा सिंह और पीटी ऊषा चाहिए। जमैका में एक उसैन बोल्ट हुआ और आज दुनिया जमैका को उसैन बोल्ट के नाम से जानती है। हमें भी एक नहीं हजारों मिल्खा सिंह चाहिए। हमें एक नहीं हजारों पीटी ऊषा चाहिए। मिल्खा की सलाह है कि नतीजे देने के अनुबंध के साथ कोच नियुक्त किए जाएं तभी ओलंपिक में एथलेटिक्स में पदक मिलेगा। उन्होंने कहा कि मैं खेल मंत्रलय और भारतीय खेल प्राधिकरण से जानना चाहता हूं कि देश में कोच तो पैदा किए जा रहे हैं, लेकिन खिलाड़ी कहां हैं जो खेलों में देश का नाम रोशन कर सकें।

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