द डर्टी पिक्चर' जैसा
कुछ करने की
इच्छा है पढिये इंटरव्यू ….
ओए लकी, लकी ओए" से फिल्मी दुनिया में कदम रखने वाली ऋचा ने कम समय में ही विविधता भरी भूमिकाएं करके सशक्त पहचान बनाई है। "गैंग्स ऑफ वासेपुर" में अपने अभिनय के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड जीतने वाली ऋचा की बड़ी तमन्ना एक वास्तविक किरदार को पर्दे पर जीने की है। "द डर्टी पिक्चर" जैसा कुछ करने की इच्छा है खुद को मैं खुशकिस्मत मानती हूं कि बॉलीवुड में आने के बाद जो मुझे पहला अवॉर्ड मिला, वह फिल्मफेयर था। जबसे मुझे यह अवॉर्ड मिला है, लोगों की मुझसे उम्मीदें बढ़ गई हैं। जिस शॉट की बाकी लोगों से चार टेक में ओके होने की उम्मीद की जाती है, मुझसे वह एक टेक में करने की आस लगाई जाती है। यह दबाव क्या होता है, इसे मैं ही समझती हूं। फिर भी, यह अवॉर्ड बहुत बड़ा सम्मान है मेरे लिए। फिल्मफेयर... और वह भी क्रिटिक्स की तरफ से बेहतरीन अभिनेत्री के लिए! मुझसे पहले कितने ही दिग्गजों ने जीता है इसे, जबकि मुझे मेरी पहली ही बड़ी फिल्म के लिए मिला यह। "ओए लकी, लकी ओए" को मैं अपनी पहली फिल्म नहीं मानती। छोटा-सा रोल था मेरा इसमें। बस, करने को कर ली थी मैंने यह फिल्म। वहीं, "गैंग्स ऑफ वासेपुर" में अपनी भूमिका के लिए मैंने सोच-समझकर हां की थी। अब सोच-समझकर चुनती हूं रोल फिल्मफेयर अवॉर्ड मिलने के बाद फर्क यह पड़ा है कि एक अभिनेत्री के तौर पर मेरी जिम्मेदारी बढ़ गई है। अब मैं वही फिल्में कर रही हूं जिनमें मुझे ऑफर की गई भूमिका में दम है। इसके अलावा बैनर भी देखने लगी हूं। मैं शायद वह फिल्म न करूं जिसकी कहानी तो अच्छी हो पर मेरी भूमिका दमदार न हो। बैनर अच्छा है और वह मेरे पास अच्छी भूमिका लेकर आता है, तो मैं कहानी पर ज्यादा गौर शायद न करूं, क्योंकि मैं जानती हूं कि बड़ा बैनर अगर फिल्म बनाने में पैसा लगा रहा है तो वह सोच-समझकर ही कर रहा है। मेरे मुकाबले उनकी दूरदर्शिता इस मामले में ज्यादा है कि कहानी कैसी है और उस पर बनी फिल्म कैसी जाने वाली है।
मेरे सामने करने के लिए क्या है, मेरे लिए वही मायने रखता है। मुझे नहीं पता मैं मंच पर कब चढ़ी इस साल के फिल्मफेयर अवॉर्ड में मैं बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस की कैटेगरी में भी नामांकित थी लेकिन वह अवॉर्ड मुझे नहीं मिला। समारोह चलते हुए लंबा वक्त हो गया था, कोई डेढ़ बज चुका था रात का। भूख भी लग आई थी। मैंने अपनी प्रोड्यूसर को कई बार कहा कि मुझे जाना है पर वे मुझे जाने नहीं दे रही थीं। जिस लाइन में मैं बीच में बैठी थी, उसी के कोने पर वे बैठी हुई थीं। मैंने तो सोचा भी नहीं था कि क्रिटिक्स मुझे बेस्ट एक्ट्रेस के लिए चुनेंगे। क्रिटिक्स अवॉर्ड की घोषणा करने के लिए मंच पर मनोज वाजपेयी थे। जब उन्होंने मेरा नाम पुकारा, उस वक्त मैं मम्मी को एसएमएस कर रही थी कि मुझे फिल्मफेयर अवॉर्ड नहीं मिला। जब मैंने अपना नाम सुना तो मुझे समझ में ही नहीं आया कि हुआ क्या है। आप यू-ट्यूब पर उस वक्त का वीडियो देखेंगे तो मेरे रिएक्शन से सब समझ आ जाएगा। मैं जब खड़ी हुई तो मेरी टांगें कांप रही थीं, मेरे पैर सही तरीके से नहीं पड़ रहे थे। मेरे साइड में रणबीर कपूर और प्रियंका चोपड़ा जैसे सितारे बैठे थे, जिनकी मैं प्रशंसक हूं। मुझे नहीं पता मैं मंच तक कैसे पहुंची। वहीं सामने ही रेखा, श्रीदेवी और माधुरी दीक्षित जैसे दिग्गज बैठे थे। अवॉर्ड लेने के लिए मैं कब उठी, कब अवॉर्ड लेकर अपनी सीट पर वापस आकर बैठ गई, मुझे कुछ पता नहीं चला था। एक बायोपिक करने की तमन्ना है फिल्मों में मैंने कई तरह की भूमिकाएं निभाई हैं, अब मेरी किसी बायोपिक में केंद्रीय किरदार निभाने की इच्छा है। वैसा किरदार जैसा विद्या बालन ने "द डर्टी पिक्चर" में निभाया है और प्रियंका "मैरी कोम" में निभाने जा रही हैं। ऐसे भूमिकाएं मुझे आकर्षित करती हैं। वैसे "गैंग्स ऑफ वासेपुर" में मेरी जो भूमिका थी, वह भी एक वास्तविक चरित्र से प्रेरित थी पर इस फिल्म में कमोबेश पुरुषों की कहानी थी। दूसरे, वह किसी एक किरदार की जिंदगी पर आधारित न होकर एक घटना पर बनी हुई फिल्म थी। अगर "द डर्टी पिक्चर" जैसे किसी रोल का ऑफर मुझे आता है तो मैं जरूर करना चाहूंगी, बशर्ते स्क्रिप्ट अच्छी हो। जीनियस हैं फरहान अख्तर बायोपिक की बात चली है तो मेरे जहन में एक ही नाम आता है... और वह है फरहान अख्तर का। "भाग मिल्खा भाग" में उनके समर्पण की हद तो देखिए! कितना वजन कम किया, कितनी मेहनत की उन्होंने मिल्खा सिंह के किरदार में ढलने के लिए! कोई सोच भी सकता था कि फरहान कभी मिल्खा सिंह जैसे लग सकते हैं? बेहद समर्पित अभिनेता हैं फरहान। मैंने उनकी फिल्म "फुकरे" की है। फरहान इस फिल्म के निर्माताओं में से एक हैं। फिल्म बनने के दौरान मुझे उनको नजदीक से जानने का मौका मिला। फरहान को अगर मैं एक शब्द में परिभाषित करूं तो वह है "जीनियस"। वे हर तरह के काम में दक्ष हैं। वैसे, फिल्म इंडस्ट्री में दो ही लोग ऐसे हैं जो हर काम कर लेते हैं। एक फरहान, दूसरे विशाल भारद्वाज। फर्क बस इतना है कि फरहान धुनें नहीं बना पाते और विशाल अभिनय नहीं कर पाते।
फरहान सब कर लेते हैं, चाहे वह लेखन हो, अभिनय हो, निर्देशन हो, फिल्म निर्माण हो या गायन। "फुकरे" के प्रमोशन के सिलसिले में हमारा जब दिल्ली जाना हुआ तो वहां लोगों ने फरहान से गाने की फरमाइश कर दी। गाना भी सोचिए कौन-सा! "रॉक-ऑन" में उनका गाया गाना! उस फिल्म को आए कई साल हो चुके हैं, फिर भी लोग इसमें फरहान के गाए गीत को भूले नहीं हैं। इसके अलावा, फरहान अपना सामाजिक दायित्व भी खूब समझते हैं। उन्होंने "मर्द" (मैन अगेन्स्ट रेप एंड डिस्क्रिमिनेशन) नामक एक मुहिम की शुरूआत की है। इसमें मैं भी शामिल हुई हूं, इसके लिए मैंने लिखित सहयोग दिया है। औरतों को लेकर समाज में जो संकुचित विचारधारा कायम है, उसके चलते उन पर होने वाले हर अपराध या अत्याचार का दोषी हम उन्हीं को ठहरा देते हैं। इसी विचारधारा के खिलाफ यह अभियान है। इसमें मैं अपने स्तर पर जितना भी सहयोग कर सकी, करूंगी।
कुछ करने की
इच्छा है पढिये इंटरव्यू ….
ओए लकी, लकी ओए" से फिल्मी दुनिया में कदम रखने वाली ऋचा ने कम समय में ही विविधता भरी भूमिकाएं करके सशक्त पहचान बनाई है। "गैंग्स ऑफ वासेपुर" में अपने अभिनय के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड जीतने वाली ऋचा की बड़ी तमन्ना एक वास्तविक किरदार को पर्दे पर जीने की है। "द डर्टी पिक्चर" जैसा कुछ करने की इच्छा है खुद को मैं खुशकिस्मत मानती हूं कि बॉलीवुड में आने के बाद जो मुझे पहला अवॉर्ड मिला, वह फिल्मफेयर था। जबसे मुझे यह अवॉर्ड मिला है, लोगों की मुझसे उम्मीदें बढ़ गई हैं। जिस शॉट की बाकी लोगों से चार टेक में ओके होने की उम्मीद की जाती है, मुझसे वह एक टेक में करने की आस लगाई जाती है। यह दबाव क्या होता है, इसे मैं ही समझती हूं। फिर भी, यह अवॉर्ड बहुत बड़ा सम्मान है मेरे लिए। फिल्मफेयर... और वह भी क्रिटिक्स की तरफ से बेहतरीन अभिनेत्री के लिए! मुझसे पहले कितने ही दिग्गजों ने जीता है इसे, जबकि मुझे मेरी पहली ही बड़ी फिल्म के लिए मिला यह। "ओए लकी, लकी ओए" को मैं अपनी पहली फिल्म नहीं मानती। छोटा-सा रोल था मेरा इसमें। बस, करने को कर ली थी मैंने यह फिल्म। वहीं, "गैंग्स ऑफ वासेपुर" में अपनी भूमिका के लिए मैंने सोच-समझकर हां की थी। अब सोच-समझकर चुनती हूं रोल फिल्मफेयर अवॉर्ड मिलने के बाद फर्क यह पड़ा है कि एक अभिनेत्री के तौर पर मेरी जिम्मेदारी बढ़ गई है। अब मैं वही फिल्में कर रही हूं जिनमें मुझे ऑफर की गई भूमिका में दम है। इसके अलावा बैनर भी देखने लगी हूं। मैं शायद वह फिल्म न करूं जिसकी कहानी तो अच्छी हो पर मेरी भूमिका दमदार न हो। बैनर अच्छा है और वह मेरे पास अच्छी भूमिका लेकर आता है, तो मैं कहानी पर ज्यादा गौर शायद न करूं, क्योंकि मैं जानती हूं कि बड़ा बैनर अगर फिल्म बनाने में पैसा लगा रहा है तो वह सोच-समझकर ही कर रहा है। मेरे मुकाबले उनकी दूरदर्शिता इस मामले में ज्यादा है कि कहानी कैसी है और उस पर बनी फिल्म कैसी जाने वाली है।
मेरे सामने करने के लिए क्या है, मेरे लिए वही मायने रखता है। मुझे नहीं पता मैं मंच पर कब चढ़ी इस साल के फिल्मफेयर अवॉर्ड में मैं बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस की कैटेगरी में भी नामांकित थी लेकिन वह अवॉर्ड मुझे नहीं मिला। समारोह चलते हुए लंबा वक्त हो गया था, कोई डेढ़ बज चुका था रात का। भूख भी लग आई थी। मैंने अपनी प्रोड्यूसर को कई बार कहा कि मुझे जाना है पर वे मुझे जाने नहीं दे रही थीं। जिस लाइन में मैं बीच में बैठी थी, उसी के कोने पर वे बैठी हुई थीं। मैंने तो सोचा भी नहीं था कि क्रिटिक्स मुझे बेस्ट एक्ट्रेस के लिए चुनेंगे। क्रिटिक्स अवॉर्ड की घोषणा करने के लिए मंच पर मनोज वाजपेयी थे। जब उन्होंने मेरा नाम पुकारा, उस वक्त मैं मम्मी को एसएमएस कर रही थी कि मुझे फिल्मफेयर अवॉर्ड नहीं मिला। जब मैंने अपना नाम सुना तो मुझे समझ में ही नहीं आया कि हुआ क्या है। आप यू-ट्यूब पर उस वक्त का वीडियो देखेंगे तो मेरे रिएक्शन से सब समझ आ जाएगा। मैं जब खड़ी हुई तो मेरी टांगें कांप रही थीं, मेरे पैर सही तरीके से नहीं पड़ रहे थे। मेरे साइड में रणबीर कपूर और प्रियंका चोपड़ा जैसे सितारे बैठे थे, जिनकी मैं प्रशंसक हूं। मुझे नहीं पता मैं मंच तक कैसे पहुंची। वहीं सामने ही रेखा, श्रीदेवी और माधुरी दीक्षित जैसे दिग्गज बैठे थे। अवॉर्ड लेने के लिए मैं कब उठी, कब अवॉर्ड लेकर अपनी सीट पर वापस आकर बैठ गई, मुझे कुछ पता नहीं चला था। एक बायोपिक करने की तमन्ना है फिल्मों में मैंने कई तरह की भूमिकाएं निभाई हैं, अब मेरी किसी बायोपिक में केंद्रीय किरदार निभाने की इच्छा है। वैसा किरदार जैसा विद्या बालन ने "द डर्टी पिक्चर" में निभाया है और प्रियंका "मैरी कोम" में निभाने जा रही हैं। ऐसे भूमिकाएं मुझे आकर्षित करती हैं। वैसे "गैंग्स ऑफ वासेपुर" में मेरी जो भूमिका थी, वह भी एक वास्तविक चरित्र से प्रेरित थी पर इस फिल्म में कमोबेश पुरुषों की कहानी थी। दूसरे, वह किसी एक किरदार की जिंदगी पर आधारित न होकर एक घटना पर बनी हुई फिल्म थी। अगर "द डर्टी पिक्चर" जैसे किसी रोल का ऑफर मुझे आता है तो मैं जरूर करना चाहूंगी, बशर्ते स्क्रिप्ट अच्छी हो। जीनियस हैं फरहान अख्तर बायोपिक की बात चली है तो मेरे जहन में एक ही नाम आता है... और वह है फरहान अख्तर का। "भाग मिल्खा भाग" में उनके समर्पण की हद तो देखिए! कितना वजन कम किया, कितनी मेहनत की उन्होंने मिल्खा सिंह के किरदार में ढलने के लिए! कोई सोच भी सकता था कि फरहान कभी मिल्खा सिंह जैसे लग सकते हैं? बेहद समर्पित अभिनेता हैं फरहान। मैंने उनकी फिल्म "फुकरे" की है। फरहान इस फिल्म के निर्माताओं में से एक हैं। फिल्म बनने के दौरान मुझे उनको नजदीक से जानने का मौका मिला। फरहान को अगर मैं एक शब्द में परिभाषित करूं तो वह है "जीनियस"। वे हर तरह के काम में दक्ष हैं। वैसे, फिल्म इंडस्ट्री में दो ही लोग ऐसे हैं जो हर काम कर लेते हैं। एक फरहान, दूसरे विशाल भारद्वाज। फर्क बस इतना है कि फरहान धुनें नहीं बना पाते और विशाल अभिनय नहीं कर पाते।
फरहान सब कर लेते हैं, चाहे वह लेखन हो, अभिनय हो, निर्देशन हो, फिल्म निर्माण हो या गायन। "फुकरे" के प्रमोशन के सिलसिले में हमारा जब दिल्ली जाना हुआ तो वहां लोगों ने फरहान से गाने की फरमाइश कर दी। गाना भी सोचिए कौन-सा! "रॉक-ऑन" में उनका गाया गाना! उस फिल्म को आए कई साल हो चुके हैं, फिर भी लोग इसमें फरहान के गाए गीत को भूले नहीं हैं। इसके अलावा, फरहान अपना सामाजिक दायित्व भी खूब समझते हैं। उन्होंने "मर्द" (मैन अगेन्स्ट रेप एंड डिस्क्रिमिनेशन) नामक एक मुहिम की शुरूआत की है। इसमें मैं भी शामिल हुई हूं, इसके लिए मैंने लिखित सहयोग दिया है। औरतों को लेकर समाज में जो संकुचित विचारधारा कायम है, उसके चलते उन पर होने वाले हर अपराध या अत्याचार का दोषी हम उन्हीं को ठहरा देते हैं। इसी विचारधारा के खिलाफ यह अभियान है। इसमें मैं अपने स्तर पर जितना भी सहयोग कर सकी, करूंगी।
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